British Establish Control over India: (1806-1856) – An Analytical StudyBritish Establish Control over India: (1806-1856) – An Analytical Study
British Establish Control over India: (1806-1856) – An Analytical Study
British Establish Control over India: (1806-1856) – An Analytical Study
एक सुन्दर महिला ने विमान में प्रवेश किया और अपनी सीट की तलाश में नजरें घुमाईं। उसने देखा कि उसकी सीट एक ऐसे व्यक्ति के बगल में है। जिसके दोनों ही हाथ नहीं है। महिला को उस अपाहिज व्यक्ति के पास बैठने में झिझक हुई। उस 'सुंदर' महिला ने एयरहोस्टेस से बोला "मै इस सीट पर सुविधापूर्वक यात्रा नहीं कर पाऊँगी क्योंकि साथ की सीट पर जो व्यक्ति बैठा हुआ है उसके दोनों हाथ नहीं हैं। उस सुन्दर महिला ने एयरहोस्टेस से सीट बदलने हेतु आग्रह किया। असहज हुई एयरहोस्टेस ने पूछा, "मैम क्या मुझे कारण बता सकती है..?" 'सुंदर' महिला ने जवाब दिया "मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती। मैं ऐसे व्यक्ति के पास बैठकर यात्रा नहीं कर पाउंगी।" दिखने में पढी लिखी और विनम्र प्रतीत होने वाली महिला की यह बात सुनकर एयरहोस्टेस अचंभित हो गई। महिला ने एक बार फिर एयरहोस्टेस से जोर देकर कहा कि "मैं उस सीट पर नहीं बैठ सकती। अतः मुझे कोई दूसरी सीट दे दी जाए।" एयरहोस्टेस ने खाली सीट की तलाश में चारों ओर नजर घुमाई पर कोई भी सीट खाली नहीं दिखी। एयरहोस्टेस ने महिला से कहा कि "मैडम इस इकोनोमी क्लास में कोई सीट खाली नहीं है, किन्तु यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखना हमारा दायित्व है अतः मैं विमान के कप्तान से बात करती हूँ। कृपया तब तक थोडा धैर्य रखें।" ऐसा कहकर होस्टेस कप्तान से बात करने चली गई। कुछ समय बाद लोटने के बाद उसने महिला को बताया, "मैडम! आपको जो असुविधा हुई, उसके लिए बहुत खेद है | इस पूरे विमान में केवल एक सीट खाली है और वह प्रथम श्रेणी में है। मैंने हमारी टीम से बात की और हमने एक असाधारण निर्णय लिया। एक यात्री को इकोनॉमी क्लास से प्रथम श्रेणी में भेजने का कार्य हमारी कंपनी के इतिहास में पहली बार हो रहा है।" 'सुंदर' महिला अत्यंत प्रसन्न हो गई किन्तु इसके पहले कि वह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती और एक शब्द भी बोल पाती... एयरहोस्टेस उस अपाहिज और दोनों हाथ विहीन व्यक्ति की ओर बढ़ गई और विनम्रता पूर्वक उनसे पूछा - "सर, क्या आप प्रथम श्रेणी में जा सकेंगे..? क्योंकि हम नहीं चाहते कि आप एक अशिष्ट यात्री के साथ यात्रा कर के परेशान हों। यह बात सुनकर सभी यात्रियों ने ताली बजाकर इस निर्णय का स्वागत किया। वह अति सुन्दर दिखने वाली महिला तो अब शर्म से नजरें ही नहीं उठा पा रही थी। तब उस अपाहिज व्यक्ति ने खड़े होकर कहा - "मैं एक भूतपूर्व सैनिक हूँ। और मैंने एक ऑपरेशन के दौरान कश्मीर सीमा पर हुए बम विस्फोट में अपने दोनों हाथ खोये थे। सबसे पहले, जब मैंने इन देवी जी की चर्चा सुनी, तब मैं सोच रहा था कि मैंने भी किन लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाली और अपने हाथ खोये..? लेकिन जब आप सभी की प्रतिक्रिया देखी तो अब अपने आप पर गर्व हो रहा है कि मैंने अपने देश और देशवासियों के लिए अपने दोनों हाथ खोये।"और इतना कह कर वह प्रथम श्रेणी में चले गए। ' सुंदर' महिला पूरी तरह से अपमानित होकर सर झुकाए सीट पर बैठ गई। अगर विचारों में उदारता नहीं है तो ऐसी सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है। 🇮🇳🇮🇳🙏🏻जय हिन्द🙏🇮🇳🇮🇳 ✍️ प्रो जुगेन्द्र सिंह यादव 🙏🙏🙏 =============================
दो मित्र पैसा कमाने मुम्बई गए थे। तीन साल मेहनत करके खूब पैसा कमाया और वापिस घर की ओर चले। रास्ते में एक के मन में लालच आ गया। दूसरे को मार कर, उसका सारा पैसा निकाल लिया और लाश को चलती रेल से गिरा दिया। ऐसा कर, वह अपने गाँव आ गया। अपने मित्र के बारे में झूठ बोल कर, खुद ठाठ से रहने लगा। एक घर बनाया, नया व्यापार किया, विवाह हुआ, एक बेटा भी हुआ, पर बेटा जन्म से ही बीमार रहता था। उसका ईलाज कराने के लिए वह कहाँ कहाँ नहीं गया पर बेटा ठीक नहीं हुआ। योंही बीस साल बीत गए। ईलाज कराने में सारा पैसा लग गया, मकान दुकान सब बिक गया। एक रात जब उसका बेटा तीन दिन से बेहोश था, आधी रात उस बेटे ने आँखें खोलीं। वह बेटे के पास ही था, जाग रहा था। बेटे के सिर पर हाथ फिराता हुआ, रोते हुए बोला- भगवान का शुक्र है, जो तूं होश में आ गया। बेटा चिल्ला कर बोला- मैं तो आ गया होश में, तूं अभी तक नहीं आया? बाप बोला- मेरे बच्चे! तूं क्या कहता है? तूं ठीक हो जाएगा। सब ठीक हो जाएगा। तूं चिंता मत कर। मैं तेरे पास ही हूँ। बेटा बोला- तूं कौन है मेरा? मैं तेरा कौन हूँ? पहचान मुझे! क्या तूं मुझे नहीं पहचानता? बाप बोला- तूं मेरा बेटा है, मैं तेरा बाप हूँ। तूं मुझे क्यों नहीं पहचानता? बेटा गरज कर बोला- मैं तो पहचानता हूँ, तूने ही नहीं पहचाना। देख मेरी ओर, पहचान मुझे! बाप उसका सिर दबाने लगा। रोते रोते बोला- देख तो रहा हूँ। तूं मेरा बेटा है। बेटा- अब देख मैं कौन हूँ? बेटा उठ कर बैठ गया, आँखें बाहर निकल आईं, चेहरा बदल गया, उसी पुराने मित्र का चेहरा आ गया। बोला- मैंने तुझे एक पल भी चैन से बैठने नहीं दिया। मैंने तुझसे अपना पाई पाई पैसा वसूल लिया है। दो सौ दस रुपए बचे हैं, उनसे मेरा संस्कार कर देना। ऐसा कह कर वह पछाड़ खाकर गिरा, और मर गया। शास्त्र कहता है कि यह जगत एक लेन-देन की मंडी है। यहाँ सभी अपना लेन-देन चुकाने आए हैं। जब तक लेन-देन बाकी है, तब तक संबंध है। खाता बराबर, संबंध बराबर। यहाँ कौन किसी का क्या ले जाएगा? यहाँ दूसरे को धोखा देने की कोशिश करने वाला, दूसरे को नहीं, अपने आप को ही धोखा देता है। ऐसे में ईमानदारी ही सर्वश्रेष्ठ नीति है। -प्रस्तुतिकरण- प्रो.जुगेन्द्र सिंह यादव ।।जय जय श्री राम।। 🙏